जाने इस पोस्ट में क्या क्या हैं
जाने इस पोस्ट में क्या-क्या है
Business Ideas: आप भी अगर कम लागत में अच्छी कमाई करने की सोच रहे हैं तो आज का हमारा यह लेख आपके लिए काफी फायदेमंद साबित होगा क्योंकि हम आपके लिए नेपियर घास की खेती का चाहते Business Ideas लेकर आए हैं. आप सभी बेहद कम पैसे में छोटे से जमीन में नेपियर घास की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं.
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अगर आपको कम लागत में अच्छा पैसा कमाना हैं तो Business Ideas आपके लिए शानदार मौका हो सकता है. दरअसल, नेपियर घास पशुओं की सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है. इस घास को दुधारू पशुओं को खिलाने से दूध में बढ़ोतरी होती है. एक बार बुवाई करने के बाद आप इसे 5 साल तक आसानी से काट सकते है.
Business Idea : नेपियर घास के उत्पादन पर बड़ा लाभ
फिलहाल सीएनजी और कोयला बनाने की तकनीक पर काम किया जा रहा है. इसके बाद किसानों को नेपियर घास के उत्पादन पर और बड़ा लाभ मिलेगा. आपको बता दें, नेपियर घास की खेती आप सर्दी, गर्मी और वर्षा ऋतु में कभी भी कर सकते है.
इसका इस्तेमाल ज्यादातर चारे के तौर पर किया जाता है. हम आपको बता दें कि, इसको हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. इस घास के डंठल को खेत में डेढ़ से दो फीट की दूरी पर रोपा जाता है. एक बीघा जमीन में करीब 4000 डंठल की जरूरत होती है.
नेपियर घास को जुलाई से अक्टूबर और फरवरी-मार्च में बोया जा सकता है. इसके बीज नहीं होते हैं. आप चाहें तो नेपियर घास लगाकर उससे मिलने वाले डंठल को बेचकर भी बंपर कमाई कर सकते हैं.

Business Ideas: एक बुआई से पाँच साल पाएँ हरा चारा
नेपियर घास की खेती हर तरह की मिट्टी में हो सकती है. इसे ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए हरे चारे की लागत भी कम बैठती है. एक बार इसे लगाने के बाद पशुपालकों को चार-पाँच साल तक लगातार हरा चारा मिलता रहता है.
नेपियर घास की पहली कटाई जहाँ 60-65 दिनों में करते हैं, वहीं इसके बाद हरेक 30-35 दिन पर यानी साल में 6 से 8 बार काट सकते हैं. कम पानी और मिट्टी से कम पोषक तत्वों की अपेक्षा रखने वाली नेपियर भूमि संरक्षण के लिए उपयुक्त है.
नेपियर घास की खेती पर मिलेगी सब्सिडी
एक बार इसकी खेती करने से पूरे साल चारे की कमी नहीं रहती है. राज्यों में किसानों को नेपियर घास की खेती करने के लिए कई सब्सिडी दी जाती है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा और मध्यप्रदेश में इसकी खेती की जाती है.
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